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मैं क्या बताऊँ कैसी परेशानियों में हूँ - भारत भूषण पन्त कविता - Darsaal

मैं क्या बताऊँ कैसी परेशानियों में हूँ

मैं क्या बताऊँ कैसी परेशानियों में हूँ

काग़ज़ की एक नाव हूँ और पानियों में हूँ

चेहरे के ख़द्द-ओ-ख़ाल में महदूद मैं नहीं

इक आइना हूँ अपनी ही हैरानियों में हूँ

दुश्वारियों को ठीक से समझा नहीं अभी

मुश्किल मिरी यही है कि आसानियों में हूँ

मौजों से दूर रह के भी बदला नहीं नसीब

साहिल के आस-पास भी तुग़्यानियों में हूँ

मुझ तक ही लौट आती है मेरी सदा की गूँज

इक बाज़गश्त सा कहीं वीरानियों में हूँ

ओढ़ा हुआ है मैं ने ये कैसा अजब लिबास

इतना ढका हुआ हूँ कि उर्यानियों में हूँ

रख़्त-ए-सफ़र में कीजिए मेरा शुमार भी

शामिल मैं अपनी बे-सर-ओ-सामानियों में हूँ

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