Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_a6da6430159d869813ae54a4dee94d81, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
कहीं जैसे मैं कोई चीज़ रख कर भूल जाता हूँ - भारत भूषण पन्त कविता - Darsaal

कहीं जैसे मैं कोई चीज़ रख कर भूल जाता हूँ

कहीं जैसे मैं कोई चीज़ रख कर भूल जाता हूँ

पहन लेता हूँ जब दस्तार तो सर भूल जाता हूँ

वगर्ना तो मुझे सब याद रहता है सिवा इस के

कहाँ हूँ कौन हूँ क्यूँ हूँ मैं अक्सर भूल जाता हूँ

मिरे इस हाल से गुमराह हो जाते हैं रहबर भी

मैं अक्सर रास्ते में अपना ही घर भूल जाता हूँ

दिखाता फिर रहा हूँ सब को अपने ज़ख़्म-ए-सर लेकिन

मिरे हाथों में भी है एक पत्थर भूल जाता हूँ

निकल जाता हूँ ख़ुद अपने हिसार-ए-ज़ात से बाहर

मैं अक्सर पाँव फैलाने में चादर भूल जाता हूँ

कभी जब सोचने लगता हूँ पस-ए-मंज़र के बारे में

तो मेरे सामने हो कोई मंज़र भूल जाता हूँ

कभी तो इतना बढ़ जाती है मेरी प्यास की शिद्दत

मिरे चारों तरफ़ है इक समुंदर भूल जाता हूँ

(786) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Kahin Jaise Main Koi Chiz Rakh Kar Bhul Jata Hun In Hindi By Famous Poet Bharat Bhushan Pant. Kahin Jaise Main Koi Chiz Rakh Kar Bhul Jata Hun is written by Bharat Bhushan Pant. Complete Poem Kahin Jaise Main Koi Chiz Rakh Kar Bhul Jata Hun in Hindi by Bharat Bhushan Pant. Download free Kahin Jaise Main Koi Chiz Rakh Kar Bhul Jata Hun Poem for Youth in PDF. Kahin Jaise Main Koi Chiz Rakh Kar Bhul Jata Hun is a Poem on Inspiration for young students. Share Kahin Jaise Main Koi Chiz Rakh Kar Bhul Jata Hun with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.