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कब तलक चलना है यूँ ही हम-सफ़र से बात कर - भारत भूषण पन्त कविता - Darsaal

कब तलक चलना है यूँ ही हम-सफ़र से बात कर

कब तलक चलना है यूँ ही हम-सफ़र से बात कर

मंज़िलें कब तक मिलेंगी रहगुज़र से बात कर

तुझ को मिल जाएगा तेरे सब सवालों का जवाब

कश्तियाँ क्यूँ डूब जाती हैं भँवर से बात कर

कब तलक छुपता रहेगा यूँ ही अपने-आप से

आइने के रू-ब-रू आ अपने डर से बात कर

बढ़ चुकी हैं अब तिरी फ़िक्र-ओ-नज़र की वुसअतें

जुगनुओं को छोड़ अब शम्स ओ क़मर से बात कर

इस तरह तो और भी तेरी घुटन बढ़ जाएगी

हम-नवा कोई नहीं तो बाम-ओ-दर से बात कर

दर्द क्या है ये समझना है तो अपने दिल से पूछ

आँसुओं की बात है तो चश्म-ए-तर से बात कर

हर सफ़र मंज़र से पस-ए-मंज़र तलक तो कर लिया

देखना क्या चाहती है अब नज़र से बात कर

धूप कैसे साए में तब्दील होती है यहाँ

इस हुनर को सीखना है तो शजर से बात कर

ज़ख़्म पोशीदा रहा तो दर्द बढ़ता जाएगा

बे-तकल्लुफ़ हो के अपने चारा-गर से बात कर

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