Khawab Poetry of Bharat Bhushan Pant
नाम | भारत भूषण पन्त |
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अंग्रेज़ी नाम | Bharat Bhushan Pant |
उम्मीदों से पर्दा रक्खा ख़ुशियों से महरूम रहीं
हर घड़ी तेरा तसव्वुर हर नफ़स तेरा ख़याल
सच्चाइयों को बर-सर-ए-पैकार छोड़ कर
सब ने होंटों से लगा कर तोड़ डाला है मुझे
फिर वो बे-सम्त उड़ानों की कहानी सुन कर
पराया लग रहा था जो वही अपना निकल आया
मुस्तक़िल रोने से दिल की बे-कली बढ़ जाएगी
किसी भी सम्त निकलूँ मेरा पीछा रोज़ होता है
ख़्वाब जीने नहीं देंगे तुझे ख़्वाबों से निकल
कभी सुकूँ कभी सब्र-ओ-क़रार टूटेगा
हर एक रात में अपना हिसाब कर के मुझे
दयार-ए-ज़ात में जब ख़ामुशी महसूस होती है
चाहतों के ख़्वाब की ताबीर थी बिल्कुल अलग
आब की तासीर में हूँ प्यास की शिद्दत में हूँ