Coupletss of Bharat Bhushan Pant
नाम | भारत भूषण पन्त |
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अंग्रेज़ी नाम | Bharat Bhushan Pant |
ये सूरज कब निकलता है उन्हीं से पूछना होगा
ये सब तो दुनिया में होता रहता है
ये क्या कि रोज़ उभरते हो रोज़ डूबते हो
ये क्या कि रोज़ पहुँच जाता हूँ मैं घर अपने
याद भी आता नहीं कुछ भूलता भी कुछ नहीं
वर्ना तो हम मंज़र और पस-मंज़र में उलझे रहते
उसे इक बुत के आगे सर झुकाते सब ने देखा है
उम्मीदों से पर्दा रक्खा ख़ुशियों से महरूम रहीं
तू हमेशा माँगता रहता है क्यूँ ग़म से नजात
सूरज से उस का नाम-ओ-नसब पूछता था मैं
शायद बता दिया था किसी ने मिरा पता
सबब ख़ामोशियों का मैं नहीं था
मैं ने माना एक गुहर हूँ फिर भी सदफ़ में हूँ
मैं थोड़ी देर भी आँखों को अपनी बंद कर लूँ तो
मैं अपने लफ़्ज़ यूँ बातों में ज़ाए कर नहीं सकता
मैं अब जो हर किसी से अजनबी सा पेश आता हूँ
कितना आसान था बचपन में सुलाना हम को
ख़ामोशी में चाहे जितना बेगाना-पन हो
कहीं जैसे मैं कोई चीज़ रख कर भूल जाता हूँ
जाने कितने लोग शामिल थे मिरी तख़्लीक़ में
इतनी सी बात रात पता भी नहीं लगी
इतना तो समझते थे हम भी उस की मजबूरी
इस तरह तो और भी दीवानगी बढ़ जाएगी
हम वो सहरा के मुसाफ़िर हैं अभी तक जिन की
हम सराबों में हुए दाख़िल तो ये हम पर खुला
हम काफ़िरों ने शौक़ में रोज़ा तो रख लिया
हर घड़ी तेरा तसव्वुर हर नफ़स तेरा ख़याल
हमारी बात किसी की समझ में क्यूँ आती
हमारे हाल पे अब छोड़ दे हमें दुनिया
घर से निकल कर जाता हूँ मैं रोज़ कहाँ