उन के आते ही हुआ हसरत-ओ-अरमाँ का हुजूम
आज मेहमान पे मेहमान चले आते हैं
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अब किसी बात का तालिब दिल-ए-नाशाद नहीं
वफ़ा का नाम तो पीछे लिया है
वो देखते जाते हैं कनखियों से इधर भी
मेरे हम-राह मिरे घर पे भी आफ़त आई
'बेख़ुद' ज़रूर रात को सोए हो पी के तुम
तकिया हटता नहीं पहलू से ये क्या है 'बेख़ुद'
इस जबीन-ए-अरक़-अफ़्शाँ पे न चुनिए अफ़्शाँ
आशिक़ समझ रहे हैं मुझे दिल लगी से आप
न क्यूँ-कर नज़्र दिल होता न क्यूँ-कर दम मिरा जाता
हो लिए जिस के हो लिए 'बेख़ुद'
रात भर गर्दिश थी उन के पासबानों की तरह
तिरी तेग़ का लाल कर दूँगा मुँह