पढ़े जाओ 'बेख़ुद' ग़ज़ल पर ग़ज़ल
वो बुत बन गए हैं सुने जाएँगे
Wasi Shah
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Gulzar
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दिल चुरा कर ले गया था कोई शख़्स
अब किसी बात का तालिब दिल-ए-नाशाद नहीं
सौदा-ए-इश्क़ और है वहशत कुछ और शय
ख़ुदा रक्खे तुझे मेरी बुराई देखने वाले
भूले से कहा मान भी लेते हैं किसी का
क्या कह दिया ये आप ने चुपके से कान में
लुत्फ़ से मतलब न कुछ मेरे सताने से ग़रज़
कब तक करेंगे जब्र दिल-ए-ना-सुबूर पर
दिल में फिर वस्ल के अरमान चले आते हैं
उठे तिरी महफ़िल से तो किस काम के उठ्ठे
ग़म में डूबे ही रहे दम न हमारा निकला
आइना देख कर वो ये समझे