न देखे होंगे रिंद-ए-ला-उबाली तुम ने 'बेख़ुद' से
कि ऐसे लोग अब आँखों से ओझल होते जाते हैं
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Gulzar
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Parveen Shakir
Anwar Masood
Allama Iqbal
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अब आप कोई काम सिखा दीजिए हम को
आप हों हम हों मय-ए-नाब हो तन्हाई हो
क्या कह दिया ये आप ने चुपके से कान में
चश्म-ए-बद-दूर वो भोले भी हैं नादाँ भी हैं
तुम्हारे हाथ ख़ाली जेब ख़ाली ज़ुल्फ़ ख़ाली थी
सब्र आता है जुदाई में न ख़्वाब आता है
तेशे से कोई काम न फ़रहाद से हुआ
टूटे पड़ते हैं ये हैं किस के ख़रीदार तमाम
तुम्हें हम चाहते तो हैं मगर क्या
रक़ीबों के लिए अच्छा ठिकाना हो गया पैदा
हुआ जो वक़्फ़-ए-ग़म वो दिल किसी का हो नहीं सकता