कोई इस तरह से मिलने का मज़ा मिलता है
ऊपरी दिल से वो मिलता है तो क्या मिलता है
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सुन के सारी दास्तान-ए-रंज-ओ-ग़म
अदू के ताकने को तुम इधर देखो उधर देखो
रिंद-मशरब कोई 'बेख़ुद' सा न होगा वल्लाह
जो तमाशा नज़र आया उसे देखा समझा
आशिक़ हैं मगर इश्क़ नुमायाँ नहीं रखते
हर एक बात तिरी बे-सबात कितनी है
झूटा जो कहा मैं ने तो शर्मा के वो बोले
टूटे पड़ते हैं ये हैं किस के ख़रीदार तमाम
बात वो कहिए कि जिस बात के सौ पहलू हों
ऐसा बना दिया तुझे क़ुदरत ख़ुदा की है
रक़ीबों के लिए अच्छा ठिकाना हो गया पैदा
ज़ाहिदों से न बनी हश्र के दिन भी या-रब