जादू है या तिलिस्म तुम्हारी ज़बान में
तुम झूट कह रहे थे मुझे ए'तिबार था
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दिल चुरा ले गई दुज़्दीदा-नज़र देख लिया
दिल तो लेते हो मगर ये भी रहे याद तुम्हें
बेताब रहें हिज्र में कुछ दिल तो नहीं हम
अपने जल्वे का वो ख़ुद आप तमाशाई है
कोई इस तरह से मिलने का मज़ा मिलता है
लुत्फ़ से मतलब न कुछ मेरे सताने से ग़रज़
आप शर्मा के न फ़रमाएँ हमें याद नहीं
सुन के सारी दास्तान-ए-रंज-ओ-ग़म
शौक़ अपना आप मैं अपनी ज़बाँ से क्यूँ कहूँ
न देखना कभी आईना भूल कर देखो
ग़म में डूबे ही रहे दम न हमारा निकला
ख़ुदा रक्खे तुझे मेरी बुराई देखने वाले