हो लिए जिस के हो लिए 'बेख़ुद'
यार अपना तो ये हिसाब रहा
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बात करने की शब-ए-वस्ल इजाज़त दे दो
हर एक बात तिरी बे-सबात कितनी है
बनी थी दिल पे कुछ ऐसी की इज़्तिराब न था
ये कह के मेरे सामने टाला रक़ीब को
शम-ए-मज़ार थी न कोई सोगवार था
आइना देख के ख़ुर्शीद पे करते हैं नज़र
वो देखते जाते हैं कनखियों से इधर भी
अब आप कोई काम सिखा दीजिए हम को
तिरी तेग़ का लाल कर दूँगा मुँह
ज़ाहिदों से न बनी हश्र के दिन भी या-रब
क़यामत है तिरी उठती जवानी