दिल तो लेते हो मगर ये भी रहे याद तुम्हें
जो हमारा न हुआ कब वो तुम्हारा होगा
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शम-ए-मज़ार थी न कोई सोगवार था
सख़्त-जाँ हूँ मुझे इक वार से क्या होता है
बेचने आए कोई क्या दिल-ए-शैदा ले कर
रिंद-मशरब कोई 'बेख़ुद' सा न होगा वल्लाह
महफ़िल वही मकान वही आदमी वही
सौदा-ए-इश्क़ और है वहशत कुछ और शय
क्यूँ कह के दिल का हाल उसे बद-गुमाँ करूँ
तेशे से कोई काम न फ़रहाद से हुआ
वो कुछ मुस्कुराना वो कुछ झेंप जाना
दिल हुआ जान हुई उन की भला क्या क़ीमत
चश्म-ए-बद-दूर वो भोले भी हैं नादाँ भी हैं
हो के मजबूर आह करता हूँ