अपने जल्वे का वो ख़ुद आप तमाशाई है
आईने उस ने लगा रक्खे हैं दीवारों में
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उन के आते ही हुआ हसरत-ओ-अरमाँ का हुजूम
दिल में फिर वस्ल के अरमान चले आते हैं
क्या कह दिया ये आप ने चुपके से कान में
सवाल-ए-वस्ल पर कुछ सोच कर उस ने कहा मुझ से
नामा-बर ये तो कही बात पते की तू ने
बोले वो मुस्कुरा के बहुत इल्तिजा के ब'अद
तुम्हारे हाथ ख़ाली जेब ख़ाली ज़ुल्फ़ ख़ाली थी
हर एक बात तिरी बे-सबात कितनी है
न सही आप हमारे जो मुक़द्दर में नहीं
महफ़िल वही मकान वही आदमी वही
हज़रत-ए-दिल ये इश्क़ है दर्द से कसमसाए क्यूँ
दिल तो लेते हो मगर ये भी रहे याद तुम्हें