आप शर्मा के न फ़रमाएँ हमें याद नहीं
ग़ैर का ज़िक्र है ये आप की रूदाद नहीं
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क़यामत है जो ऐसे पर दिल-ए-उम्मीद-वार आए
जो तुझे इम्तिहान देता है
मौत आ रही है वादे पे या आ रहे हो तुम
तकिया हटता नहीं पहलू से ये क्या है 'बेख़ुद'
उन्हें तो सितम का मज़ा पड़ गया है
आशिक़ समझ रहे हैं मुझे दिल लगी से आप
आशिक़ हैं मगर इश्क़ नुमायाँ नहीं रखते
मुझ को न दिल पसंद न वो बेवफ़ा पसंद
कोई इस तरह से मिलने का मज़ा मिलता है
हुआ जो वक़्फ़-ए-ग़म वो दिल किसी का हो नहीं सकता
बेचने आए कोई क्या दिल-ए-शैदा ले कर
पढ़े जाओ 'बेख़ुद' ग़ज़ल पर ग़ज़ल