आप हों हम हों मय-ए-नाब हो तन्हाई हो
दिल में रह रह के ये अरमान चले आते हैं
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मेरा हर शेर है इक राज़-ए-हक़ीक़त 'बेख़ुद'
न देखना कभी आईना भूल कर देखो
हमें पीने से मतलब है जगह की क़ैद क्या 'बेख़ुद'
कोई इस तरह से मिलने का मज़ा मिलता है
ये कह के मेरे सामने टाला रक़ीब को
बात करने की शब-ए-वस्ल इजाज़त दे दो
मुँह में वाइज़ के भी भर आता है पानी अक्सर
तिरी तेग़ का लाल कर दूँगा मुँह
बनी थी दिल पे कुछ ऐसी की इज़्तिराब न था
दिल में फिर वस्ल के अरमान चले आते हैं
न अरमाँ बन के आते हैं न हसरत बन के आते हैं