टूटे पड़ते हैं ये हैं किस के ख़रीदार तमाम
टूटे पड़ते हैं ये हैं किस के ख़रीदार तमाम
सुब्ह से बंद हैं क्यूँ मिस्र के बाज़ार तमाम
अब रहा कौन जो दीदार तुम्हारा देखे
पर्दा उठते ही हुई हसरत-ए-दीदार तमाम
इक झलक देख ली पर्दे से तो ज़ालिम ने कहा
लूट ली तू ने मिरे हुस्न की सरकार तमाम
हुस्न अंदाज़ अदा नाज़ निगाहें शोख़ी
दिल मिरा छीन के बन बैठे हैं मुख़्तार तमाम
अब भी अपना कोई 'बेख़ुद' मुझे समझा कि नहीं
छप गए अब तो मिरे हाल के अख़बार तमाम
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