शम-ए-मज़ार थी न कोई सोगवार था
शम-ए-मज़ार थी न कोई सोगवार था
तुम जिस पे रो रहे थे ये किस का मज़ार था
तड़पूँगा उम्र-भर दिल-ए-मरहूम के लिए
कम-बख़्त ना-मुराद लड़कपन का यार था
सौदा-ए-इश्क़ और है वहशत कुछ और शय
मजनूँ का कोई दोस्त फ़साना-निगार था
जादू है या तिलिस्म तुम्हारी ज़बान में
तुम झूट कह रहे थे मुझे ए'तिबार था
क्या क्या हमारे सज्दे की रुस्वाइयाँ हुईं
नक़्श-ए-क़दम किसी का सर-ए-रहगुज़ार था
इस वक़्त तक तो वज़्अ' में आया नहीं है फ़र्क़
तेरा करम शरीक जो पर्वरदिगार था
(1907) Peoples Rate This