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न सही आप हमारे जो मुक़द्दर में नहीं - बेख़ुद देहलवी कविता - Darsaal

न सही आप हमारे जो मुक़द्दर में नहीं

न सही आप हमारे जो मुक़द्दर में नहीं

अब वो पहली सी तड़प भी दिल-ए-मुज़्तर में नहीं

आप की बात की वक़अत नहीं असलन दिल में

आप दम भर में तो हाँ करते हैं दम भर में नहीं

मुझ को बावर तो जब आए कि कुछ उम्मीद भी हो

लिख दिया ख़त में वो उस ने जो मुक़द्दर में नहीं

मैं ने पूछा था कहो और सताओगे मुझे

मुँह से निकली है सितम-गर के घड़ी भर में नहीं

आप क्यूँ ज़िक्र से 'बेख़ुद' के ख़जिल होते हैं

ये तो वो नाम है जो आप के दफ़्तर में नहीं

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