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दिल चुरा ले गई दुज़्दीदा-नज़र देख लिया - बेख़ुद देहलवी कविता - Darsaal

दिल चुरा ले गई दुज़्दीदा-नज़र देख लिया

दिल चुरा ले गई दुज़्दीदा-नज़र देख लिया

हम न कहते थे कि उस चोर ने घर देख लिया

बंदा-पर्वर ग़म-ए-फ़ुर्क़त का असर देख लिया

दाग़-ए-दिल देख लिया दाग़-ए-जिगर देख लिया

क़द भी कम उम्र भी कम मश्क़-ए-सितम और भी कम

कर चुके क़त्ल मुझे जाइए घर देख लिया

शिकवे के साथ लगावट भी चली जाती है

जब किया कुछ तो कनखियों से इधर देख लिया

दाद-ख़्वाहों पे नई हश्र में आफ़त आई

सफ़ की सफ़ लोट गई उस ने जिधर देख लिया

क़त्ल-ए-उश्शाक़ पे लो और उठाओ ख़ंजर

झुक गई बार-ए-नज़ाकत से कमर देख लिया

न छुटा तुम से ये मय-ख़ाने का रस्ता 'बेख़ुद'

मुँह छुपाए हुए जाते हो किधर देख लिया

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