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अब इस से क्या तुम्हें था या उमीद-वार न था - बेख़ुद देहलवी कविता - Darsaal

अब इस से क्या तुम्हें था या उमीद-वार न था

अब इस से क्या तुम्हें था या उमीद-वार न था

तुम्हारे वस्ल का तुम से तो ख़्वास्त-गार न था

शराब पीते ही वो खुल गए वो खुल खेले

शब-ए-विसाल में कुछ लुत्फ़-ए-इंतिज़ार न था

न झपकी जब शब-ए-व'अदा पलक तो हम समझे

ये कोई और बला थी ये इंतिज़ार न था

वो तीर आप के तरकश में कौन सा निकला

जो बे-चले भी हमारे जिगर के पार न था

वो मर गया है तो क्या है हमें भी मरना है

ख़ुदा गवाह है 'बेख़ुद' वो शराब-ख़्वार न था

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