वो जो कर रहे हैं बजा कर रहे हैं
ये जो हो रहा है बजा हो रहा है
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नाले में कभी असर न आया
गर्दिश-ए-बख़्त से बढ़ती ही चली जाती हैं
कभी हया उन्हें आई कभी ग़ुरूर आया
हासिल उस मह-लक़ा की दीद नहीं
साथ साथ अहल-ए-तमन्ना का वो मुज़्तर जाना
पयाम ले के जो पैग़ाम-बर रवाना हुआ
शिफ़ा क्या हो नहीं सकती हमें लेकिन नहीं होती
रक़ीबों का मुझ से गिला हो रहा है
शिकवा सुन कर जो मिज़ाज-ए-बुत-ए-बद-ख़ू बदला
वाइज़ ओ मोहतसिब का जमघट है
गर्दिश-ए-चश्म-ए-यार ने मारा