शिफ़ा क्या हो नहीं सकती हमें लेकिन नहीं होती
दवा क्या कर नहीं सकते हैं हम लेकिन नहीं करते
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आह करना दिल-ए-हज़ीं न कहीं
दैर-ओ-हरम को देख लिया ख़ाक भी नहीं
यूँही रहा जो बुतों पर निसार दिल मेरा
हैं वस्ल में शोख़ी से पाबंद-ए-हया आँखें
इस बज़्म में न होश रहेगा ज़रा मुझे
शिकवा सुन कर जो मिज़ाज-ए-बुत-ए-बद-ख़ू बदला
बैठता है हमेशा रिंदों में
नाले में कभी असर न आया
गर्दिश-ए-चश्म-ए-यार ने मारा
जिस में सौदा नहीं वो सर ही नहीं
न मुदारात हमारी न अदू से नफ़रत
दर्द-ए-दिल में कमी न हो जाए