ख़ून हो जाएँ ख़ाक में मिल जाएँ
हज़रत-ए-दिल से कुछ बईद नहीं
Anwar Masood
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Javed Akhtar
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
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हश्र पर वा'दा-ए-दीदार है किस का तेरा
शिफ़ा क्या हो नहीं सकती हमें लेकिन नहीं होती
पयाम ले के जो पैग़ाम-बर रवाना हुआ
वो उन का वस्ल में ये कह के मुस्कुरा देना
आह करना दिल-ए-हज़ीं न कहीं
कभी हया उन्हें आई कभी ग़ुरूर आया
वाइज़ ओ मोहतसिब का जमघट है
साथ साथ अहल-ए-तमन्ना का वो मुज़्तर जाना
उन की हसरत भी नहीं मैं भी नहीं दिल भी नहीं
उन को दिमाग़-ए-पुर्सिश-ए-अहल-ए-मेहन कहाँ
यूँही रहा जो बुतों पर निसार दिल मेरा
इस बज़्म में न होश रहेगा ज़रा मुझे