गर्दिश-ए-बख़्त से बढ़ती ही चली जाती हैं
मिरी दिल-बस्तगियाँ ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर के साथ
Javed Akhtar
Anwar Masood
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Faiz Ahmad Faiz
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Habib Jalib
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Wasi Shah
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दर्द-ए-दिल में कमी न हो जाए
पयाम ले के जो पैग़ाम-बर रवाना हुआ
कभी हया उन्हें आई कभी ग़ुरूर आया
हासिल उस मह-लक़ा की दीद नहीं
दैर-ओ-हरम को देख लिया ख़ाक भी नहीं
ख़ून हो जाएँ ख़ाक में मिल जाएँ
उन को दिमाग़-ए-पुर्सिश-ए-अहल-ए-मेहन कहाँ
क्यूँ मैं अब क़ाबिल-ए-जफ़ा न रहा
गर्दिश-ए-चश्म-ए-यार ने मारा
हश्र पर वा'दा-ए-दीदार है किस का तेरा