बेखुद बदायुनी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का बेखुद बदायुनी
नाम | बेखुद बदायुनी |
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अंग्रेज़ी नाम | Bekhud Badayuni |
मौत की तिथि | 1912 |
वो उन का वस्ल में ये कह के मुस्कुरा देना
वो जो कर रहे हैं बजा कर रहे हैं
वाइज़ ओ मोहतसिब का जमघट है
उन की हसरत भी नहीं मैं भी नहीं दिल भी नहीं
शिकवा सुन कर जो मिज़ाज-ए-बुत-ए-बद-ख़ू बदला
शिफ़ा क्या हो नहीं सकती हमें लेकिन नहीं होती
न मुदारात हमारी न अदू से नफ़रत
ख़ून हो जाएँ ख़ाक में मिल जाएँ
कभी हया उन्हें आई कभी ग़ुरूर आया
हासिल उस मह-लक़ा की दीद नहीं
गर्दिश-ए-बख़्त से बढ़ती ही चली जाती हैं
दैर-ओ-हरम को देख लिया ख़ाक भी नहीं
बैठता है हमेशा रिंदों में
आँसू मिरी आँखों में हैं नाले मिरे लब पर
यूँही रहा जो बुतों पर निसार दिल मेरा
उन को दिमाग़-ए-पुर्सिश-ए-अहल-ए-मेहन कहाँ
शिकवा सुन कर जो मिज़ाज-ए-बुत-ए-बद-ख़ू बदला
साथ साथ अहल-ए-तमन्ना का वो मुज़्तर जाना
रक़ीबों का मुझ से गिला हो रहा है
पयाम ले के जो पैग़ाम-बर रवाना हुआ
नाले में कभी असर न आया
क्यूँ मिरा हाल क़िस्सा-ख़्वाँ से सुनो
क्यूँ मैं अब क़ाबिल-ए-जफ़ा न रहा
कभी हया उन्हें आई कभी ग़ुरूर आया
जिस में सौदा नहीं वो सर ही नहीं
इस बज़्म में न होश रहेगा ज़रा मुझे
हासिल उस मह-लक़ा की दीद नहीं
हश्र पर वा'दा-ए-दीदार है किस का तेरा
हैं वस्ल में शोख़ी से पाबंद-ए-हया आँखें
गर्दिश-ए-चश्म-ए-यार ने मारा