ज़मीन प्यासी है बूढ़ा गगन भी भूका है
मैं अपने अहद के क़िस्से तमाम लिखता हूँ
Allama Iqbal
Habib Jalib
Javed Akhtar
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Wasi Shah
Gulzar
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Parveen Shakir
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नए ज़माने में अब ये कमाल होने लगा
किवाड़ बंद करो तीरा-बख़्तो सो जाओ
बीच सड़क इक लाश पड़ी थी और ये लिक्खा था
उस का जवाब एक ही लम्हे में ख़त्म था
हम भटकते रहे अंधेरे में
न जाने कौन सा नश्शा है उन पे छाया हुआ
नज़र की फ़त्ह कभी क़ल्ब की शिकस्त लगे
फ़र्श ता अर्श कोई नाम-ओ-निशाँ मिल न सका
फ़स्ल-ए-गुल कब लुटी नहीं मालूम
उलझ रहे हैं बहुत लोग मेरी शोहरत से
दिमाग़ अर्श पे है ख़ुद ज़मीं पे चलते हैं