यूँ तो कई किताबें पढ़ीं ज़ेहन में मगर
महफ़ूज़ एक सादा वरक़ देर तक रहा
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Allama Iqbal
Anwar Masood
Gulzar
Parveen Shakir
Wasi Shah
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Friends Poetry
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वो थे जवाब के साहिल पे मुंतज़िर लेकिन
किवाड़ बंद करो तीरा-बख़्तो सो जाओ
ख़ुद अपने जुर्म का मुजरिम को ए'तिराफ़ न था
हम चटानों की तरह साहिल पे ढाले जाएँगे
दौर-ए-हाज़िर की बज़्म में 'बेकल'
हम भटकते रहे अंधेरे में
न जाने कौन सा नश्शा है उन पे छाया हुआ
अज़्म-ए-मोहकम हो तो होती हैं बलाएँ पसपा
तमन्ना बन गई है माया-ए-इल्ज़ाम क्या होगा
तो पहले मेरा ही हाल-ए-तबाह लिख लीजे
नज़र की फ़त्ह कभी क़ल्ब की शिकस्त लगे
मैं जब भी कोई अछूता कलाम लिखता हूँ