उलझ रहे हैं बहुत लोग मेरी शोहरत से
किसी को यूँ तो कोई मुझ से इख़्तिलाफ़ न था
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Wasi Shah
Parveen Shakir
Anwar Masood
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1117) Peoples Rate This
तंज़ की तेग़ मुझी पर सभी खींचे होंगे
नज़र की फ़त्ह कभी क़ल्ब की शिकस्त लगे
दौर-ए-हाज़िर की बज़्म में 'बेकल'
यूँ तो कई किताबें पढ़ीं ज़ेहन में मगर
ख़ुद अपने जुर्म का मुजरिम को ए'तिराफ़ न था
इश्क़-विश्क़ ये चाहत-वाहत मन का भुलावा फिर मन भी अपना क्या
न चिलमनों की हसीं सरसराहटें होंगी
न जाने कौन सा नश्शा है उन पे छाया हुआ
मुझ को शिकस्तगी का क़लक़ देर तक रहा
चाँदी के घरोंदों की जब बात चली होगी
लोग तो जा के समुंदर को जला आए हैं