ख़ुदा करे मिरा मुंसिफ़ सज़ा सुनाने पर
मिरा ही सर मिरे क़ातिल के रू-ब-रू रख दे
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Wasi Shah
Habib Jalib
Parveen Shakir
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1004) Peoples Rate This
यूँ तो कहने को तिरी राह का पत्थर निकला
नज़र की फ़त्ह कभी क़ल्ब की शिकस्त लगे
उधर वो हाथों के पत्थर बदलते रहते हैं
उलझ रहे हैं बहुत लोग मेरी शोहरत से
उदास काग़ज़ी मौसम में रंग ओ बू रख दे
ज़मीन प्यासी है बूढ़ा गगन भी भूका है
हम चटानों की तरह साहिल पे ढाले जाएँगे
जब कूचा-ए-क़ातिल में हम लाए गए होंगे
हम भटकते रहे अंधेरे में
मुझ को शिकस्तगी का क़लक़ देर तक रहा
दौर-ए-हाज़िर की बज़्म में 'बेकल'
बदन की आँच से सँवला गए हैं पैराहन