हर एक लहज़ा मिरी धड़कनों में चुभती थी
अजीब चीज़ मिरे दिल के आस-पास रही
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Gulzar
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Habib Jalib
Rahat Indori
Anwar Masood
Allama Iqbal
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(862) Peoples Rate This
मुझ को शिकस्तगी का क़लक़ देर तक रहा
उदास काग़ज़ी मौसम में रंग ओ बू रख दे
भीतर बसने वाला ख़ुद बाहर की सैर करे मौला ख़ैर करे
किवाड़ बंद करो तीरा-बख़्तो सो जाओ
ख़ुद अपने जुर्म का मुजरिम को ए'तिराफ़ न था
फ़स्ल-ए-गुल कब लुटी नहीं मालूम
बीच सड़क इक लाश पड़ी थी और ये लिक्खा था
उधर वो हाथों के पत्थर बदलते रहते हैं
रहीन-ए-आस रही है न महव-ए-यास रही
दौर-ए-हाज़िर की बज़्म में 'बेकल'
ख़ुदा करे मिरा मुंसिफ़ सज़ा सुनाने पर