दौर-ए-हाज़िर की बज़्म में 'बेकल'
कौन है आदमी नहीं मालूम
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Rahat Indori
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(856) Peoples Rate This
तो पहले मेरा ही हाल-ए-तबाह लिख लीजे
वो थे जवाब के साहिल पे मुंतज़िर लेकिन
फ़स्ल-ए-गुल कब लुटी नहीं मालूम
रहीन-ए-आस रही है न महव-ए-यास रही
वो मेरे क़त्ल का मुल्ज़िम है लोग कहते हैं
उस का जवाब एक ही लम्हे में ख़त्म था
दिमाग़ अर्श पे है ख़ुद ज़मीं पे चलते हैं
न जाने कौन सा नश्शा है उन पे छाया हुआ
यूँ तो कई किताबें पढ़ीं ज़ेहन में मगर
भीतर बसने वाला ख़ुद बाहर की सैर करे मौला ख़ैर करे
जब कूचा-ए-क़ातिल में हम लाए गए होंगे