तंज़ की तेग़ मुझी पर सभी खींचे होंगे

तंज़ की तेग़ मुझी पर सभी खींचे होंगे

आप जब और मिरे और नगीचे होंगे

आइना पूछेगा जब रात कहाँ थे साहब

अपनी बाँहों में वो अपने ही को भींचे होंगे

जिस तरफ़ चाहिएगा आप चले जाइएगा

सामने चाँद के हम आँखों को मीचे होंगे

आज फिर गुज़़रेंगे क़ातिल की गली से हम लोग

आज फिर बंद मकानों के दरीचे होंगे

जिस की हर शाख़ पे राधाएँ मचलती होंगी

देखना कृष्ण उसी पेड़ के नीचे होंगे

इक मकाँ और भी है शीश-महल के लोगो

जिस में दहलीज़ न आँगन न दरीचे होंगे

तेरा दम है तो बहारों को सुकूँ है 'बेकल'

फिर तिरे बा'द कहाँ बाग़ बग़ीचे होंगे

(1110) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Tanz Ki Tegh Mujhi Par Sabhi Khinche Honge In Hindi By Famous Poet Bekal Utsahi. Tanz Ki Tegh Mujhi Par Sabhi Khinche Honge is written by Bekal Utsahi. Complete Poem Tanz Ki Tegh Mujhi Par Sabhi Khinche Honge in Hindi by Bekal Utsahi. Download free Tanz Ki Tegh Mujhi Par Sabhi Khinche Honge Poem for Youth in PDF. Tanz Ki Tegh Mujhi Par Sabhi Khinche Honge is a Poem on Inspiration for young students. Share Tanz Ki Tegh Mujhi Par Sabhi Khinche Honge with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.