चाँदनी-रात में बुलाऊँ तुझे
धड़कनें दिल की मैं सुनाऊँ तुझे
तेरे पहलू में रख कि दिल अपना
चाँद-रातों में गुनगुनाऊँ तुझे
कुछ कहे अन-कहे सवाल करूँ
और यूँ फिर से आज़माऊँ तुझे
अपनी हस्ती को भूल सकती हूँ
कैसे मुमकिन है भूल जाऊँ तुझे
आँसुओं की तपिश में जलती हूँ
काश इस में कभी जलाऊँ तुझे