जो न शौक़ीन हो ऐसा नहीं दिलबर कोई
पालता है कोई बुलबुल तू कबूतर कोई
बीसियों चाहने वालों की ज़रूरत क्या है
नाज़ उठवाओगे तुम उन से कि छप्पर कोई
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इक आह-ए-आतिशीं में डबल काम हो गया
क्या वो हरजाई मुझे ढूँडे मिलेगा जो कभी