क्या गिला इस का जो मेरा दिल गया
क्या गिला इस का जो मेरा दिल गया
मिल गए तुम मुझ को सब कुछ मिल गया
जिस को आँखें ढूँढती थीं पा गईं
दिल को जिस की जुस्तुजू थी मिल गया
इस गुल-ए-रअना ने हँस कर बात की
ग़ुंचा-ए-ख़ातिर हमारा खिल गया
छोड़ कर तू उस को ग़ैरों से मिला
ख़ाक में जो तेरी ख़ातिर मिल गया
बन गई हर मौज इक मौज-ए-सराब
तिश्ना-लब जब मैं लब-ए-साहिल गया
अर्ज़-ए-हाल-ए-चाक-ए-दिल क्यूँकर करूँ
सामने उन के गया मुँह सिल गया
ग़ैर ही क्या बे-रुख़ी से आप की
आज 'बेदम' भी बहुत बे-दिल गया
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