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दारू-ए-दर्द-ए-निहाँ राहत-ए-जानी सनमा - बेदम शाह वारसी कविता - Darsaal

दारू-ए-दर्द-ए-निहाँ राहत-ए-जानी सनमा

दारू-ए-दर्द-ए-निहाँ राहत-ए-जानी सनमा

ईसा-ए-मुर्दा-दिलाँ यूसुफ़-ए-सानी सनमा

तेरे सदक़े मिरी जाँ तुझ पे मिरा दिल क़ुर्बां

वारिस-ए-कौन-ओ-मकाँ फ़ख़्र-ए-ज़मानी सनमा

तेरा हर जल्वा है आईना-ए-असरार-ए-अज़ल

तेरी सूरत में हैं अनवार-ए-मआनी सनमा

दिल के दाग़ों को कलेजे से लगा रक्खा है

कि यही दाग़ तो हैं तेरी निशानी सनमा

तू ही जब क़िस्सा-ए-ग़म से मिरे घबराता है

फिर सुने कौन मिरे ग़म की कहानी सनमा

ता-कुजा अश्क बुझाएँगे मिरे दिल की लगी

फूंके देता है मुझे सोज़-ए-निहानी सनमा

वक़्फ़ सज्दा है तिरे दर पे जबीन-ए-'बेदम'

क़िबला-ए-दिल सनमा काबा-ए-जानी सनमा

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