Ghazals of Bedam Shah Warsi (page 1)
नाम | बेदम शाह वारसी |
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अंग्रेज़ी नाम | Bedam Shah Warsi |
जन्म की तारीख | 1876 |
मौत की तिथि | 1936 |
जन्म स्थान | Barabanki |
यूँ गुलशन-ए-हस्ती की माली ने बिना डाली
ये साक़ी की करामत है कि फ़ैज़-ए-मय-परस्ती है
ये ख़ुसरवी-ओ-शौकत-ए-शाहाना मुबारक
उस को दुनिया और न उक़्बा चाहिए
तूर वाले तिरी तनवीर लिए बैठे हैं
तुम ख़फ़ा हो तो अच्छा ख़फ़ा हो
तेरी उल्फ़त शोबदा-पर्वाज़ है
सीने में दिल है दिल में दाग़ दाग़ में सोज़-ओ-साज़-ए-इश्क़
शादी ओ अलम सब से हासिल है सुबुकदोशी
सहारा मौजों का ले ले के बढ़ रहा हूँ मैं
क़स्र-ए-जानाँ तक रसाई हो किसी तदबीर से
क़फ़स की तीलियों से ले के शाख़-ए-आशियाँ तक है
पास-ए-अदब मुझे उन्हें शर्म-ओ-हया न हो
पर्दे उठे हुए भी हैं उन की इधर नज़र भी है
पहले शर्मा के मार डाला
न तो अपने घर में क़रार है न तिरी गली में क़याम है
न सुनो मेरे नाले हैं दर्द-भरे दार-ओ-असरे आह-ए-सहरे
न मेहराब-ए-हरम समझे न जाने ताक़-ए-बुत-ख़ाना
न कुनिश्त ओ कलीसा से काम हमें दर-ए-दैर न बैत-ए-हरम से ग़रज़
मुझ से छुप कर मिरे अरमानों को बर्बाद न कर
मुझे शिकवा नहीं बर्बाद रख बर्बाद रहने दे
मुझे जल्वों की उस के तमीज़ हो क्या मेरे होश-ओ-हवास बचा ही नहीं
मुबारक साक़ी-ए-मस्ताँ मुबारक
में ग़श में हूँ मुझे इतना नहीं होश
मैं यार का जल्वा हूँ
क्या गिला इस का जो मेरा दिल गया
कुछ लगी दिल की बुझा लूँ तो चले जाइएगा
खींची है तसव्वुर में तस्वीर-ए-हम-आग़ोशी
कौन सा घर है कि ऐ जाँ नहीं काशाना तिरा और जल्वा-ख़ाना तिरा
काश मिरी जबीन-ए-शौक़ सज्दों से सरफ़राज़ हो