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सरीर-ए-ख़ामा से तशरीह-ए-सिर्र-ए-ज़ी होगी - बेबाक भोजपुरी कविता - Darsaal

सरीर-ए-ख़ामा से तशरीह-ए-सिर्र-ए-ज़ी होगी

सरीर-ए-ख़ामा से तशरीह-ए-सिर्र-ए-ज़ी होगी

फ़ज़ा-ए-शेर में इक़्लीम-ए-आगही होगी

जिसे करम से तिरे बख़्त-ए-ना-रसा न मिला

उसे नसीब हक़ीक़त में क्या ख़ुशी होगी

फ़ज़ा-ए-तीरा की उक़्दा-कुशा है जो तनवीर

ख़ुलूस-ए-दिल की वो पुर-कार सादगी होगी

रियाज़-ए-मअ'नी की जिस से फ़ज़ा है रख़्शंदा

अलम-नसीब के दिल की वो शायरी होगी

हरम के ख़ाक-नशीनों से बे-अदब ईजाद

वुफ़ूर-ए-दर्द से पैदा क़लंदरी होगी

लहू से दिल के चराग़ाँ करो ख़ुदा-ख़ाना

तड़प जो रूह में होगी तो बंदगी होगी

हरीम-ए-नाज़ को सूरत-परस्त क्या जाने

अदा-शनास फ़क़त दिल की बे-ख़ुदी होगी

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