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हक़ पसंदों से जहाँ बर-सर-ए-पैकार सही - बेबाक भोजपुरी कविता - Darsaal

हक़ पसंदों से जहाँ बर-सर-ए-पैकार सही

हक़ पसंदों से जहाँ बर-सर-ए-पैकार सही

कुछ दिनों और भी रुस्वा सर-ए-बाज़ार सही

ख़ून-ए-मासूम से ता'मीर है बुस्तान-ए-वजूद

इशरत-ए-दहर से महरूम वफ़ादार सही

जेहद-ओ-ईसार से रौशन है वफ़ा की क़िंदील

दिल-गिरफ़्ता हरम-ए-पाक का मे'मार सही

मेरा ईमान है एलान-ए-हक़ीक़त करना

लाख मंसूर की ख़ातिर रसन-ओ-दार सही

अज़्म-ए-रासिख़ है तो हर गाम है मंज़िल ब-कनार

वहशत-आसार सिवा दर्रा-ए-दुश्वार सही

आबला-पा से बुझाते ही चलो तिश्ना-लबी

मुम्तहिन जादा-ए-औक़ात का हर ख़ार सही

बढ़ के लेना है हमें जुरअ'त-ए-ईसार से काम

हाइल-ए-राह-ए-जुनूद-ए-ग़म-ओ-आज़ार सही

डाल दो बहर-ए-हवादिस में ख़ुदा पर कश्ती

ना-ख़ुदा दाम-ए-तवहहुम में गिरफ़्तार सही

राहबर जज़्बा-ए-सादिक़ दिल-ए-मासूम का है

हर नफ़स ज़ीस्त का इक मंज़िल-ए-दुश्वार सही

सरफ़रोशान-ए-वतन आज वतन की ख़ातिर

एक गुलज़ार हो ता'मीर सर-ए-दार सही

हुस्न-ए-अख़्लाक़ से 'बेबाक' रहो सीना-सिपर

दस्त-ए-अग़्यार में शमशीर-ए-शरर-बार सही

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