फ़स्ल-ए-बहार जाने ये क्या गुल कतर गई
फ़स्ल-ए-बहार जाने ये क्या गुल कतर गई
साग़र गुलों का ख़ून-ए-अनादिल से भर गई
गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बूद में आरिफ़ की आगही
औराक़-ए-गुल पे सूरत-ए-शबनम बिखर गई
हासिल हुज़ूर-ए-हुस्न की सर-मस्तियाँ कहाँ
तहज़ीब-ए-अस्र लौट के जाने किधर गई
दानिशवरो वो रम्ज़ समझने की चीज़ थी
नज़र-ए-वफ़ा-शिआर ख़ता जो भी कर गई
ख़ुश-बख़्त ग़र्क़ बहर-ए-तकल्लुफ़ में हो गए
टूटे हुए नसीब की कश्ती गुज़र गई
गुलशन के दीदा-वर ही तह-ए-दाम आ गए
जादू जगा के ख़ूब नसीम-ए-सहर गई
शाइस्तगी ने ख़ैर का पुतला बना दिया
बर्क़-ए-फ़ना भी हुस्न-ए-अदा पे ठहर गई
अल्मास-ओ-लअ'ल बिक गए मुतलक़ ख़ज़फ़ के मोल
अब आबरू-ए-हिकमत-ए-साहब-हुनर गई
साक़ी को ख़ास मसनद-ए-गुल पर जो आई नींद
सर-मस्ती-ए-शराब-ए-ग़म-ए-मो'तबर गई
इतनी थी इक नफ़स के तबस्सुम के दास्ताँ
नाज़ुक कली थी फूल बनी और बिखर गई
यूँ तो सुख़न की सूरत-ए-मअ'नी थी दिल-पज़ीर
ख़ून-ए-जिगर से और हक़ीक़त निखर गई
तय हो सके ख़िरद से न हस्ती के मरहले
नाकामियों की आह मिरी काम कर गई
'बेबाक' बे-कसी के है जुज़ कौन दस्त-गीर!
मौज-ए-नफ़स हयात की जाने किधर गई
(933) Peoples Rate This