बड़ी दिल-शिकन है रह-ए-सफ़र कोई हम-सफ़र है न यार है
बड़ी दिल-शिकन है रह-ए-सफ़र कोई हम-सफ़र है न यार है
कि जवाँ-असर है तमाम शय न सुकून है न क़रार है
ज़रा तेज़-गाम बढ़े चलो है फ़ज़ा-ए-सहरा मुसाफ़िरो
जहाँ आँख दिल की झपक गई वहीं ज़िंदगी का मज़ार है
न रुमूज़-ए-इश्क़ से बा-ख़बर न मिज़ाज-ए-हुस्न से आगही
ये मज़ाक़-ए-रामिश-ओ-रंग भी रह-ए-रास्ती से फ़रार है
न किसी में हुस्न-ए-हया रहा न किसी में बू-ए-वफ़ा रही
अभी दोश-ए-अक़्ल पे सर-बसर कोई देव-ए-मक्र सवार है
है ज़मीर-ए-ज़िंदा के वास्ते तो बिसात-ए-गुल भी तबाह-कुन
मिरे हम-जलीस ख़बर भी है यही आस्तीन का मार है
तिरी बे-पनाह नवाज़िशें तिरी बे-हिसाब इनायतें
मिरी रू-सियाही-ए-गूनागूँ का हिसाब है न शुमार है
तिरी रहमतों से है दूर कब मिरी चारा-साज़ी-ए-बे-कसी
किसी ग़म-नसीब की दहर में ये सदा से ख़ास पुकार है
न किसी से अद्ल की बात कर न किसी से ख़ैर की रख तलब
कि मता-ए-नूर-ए-सहर यहाँ शब-ए-तीरा-ए-तर पे निसार है
तिरी पंद ख़ैर-असर नहीं तिरी बंदगी भी ग़लत-निगर
तिरा फ़िक्र नासेह-ए-मोहतरम अभी मुफ़्लिसी का शिकार है
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