झोंके आते हैं बू-ए-उल्फ़त के
झोंके आते हैं बू-ए-उल्फ़त के
फूल यारब हैं किस की तुर्बत के
शोर है दिल में ग़म के नालों का
अलम उठते हैं आज हसरत के
तेरी बातों में क्या हलावत थी
कि न लब खुल सके शिकायत के
हम पे और तेग़-ए-नाज़ उठ न सके
चोचले हैं तिरी नज़ाकत के
ऐ 'बयाँ' क़ैस-ओ-वामिक़-ओ-फ़र्हाद
थे ये सारे मुरीद हज़रत के
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