हाँ जेहल तुम्हें से रंग लाया फिर क्यूँ
लाया तो गिला ज़बाँ पर आया फिर क्यूँ
गर जानते थे ख़ाना-ख़राबी के सबब
मेहमाँ को मेज़बाँ बनाया फिर क्यूँ
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सच है कि जहाँ में सैर क्या क्या देखी
गौहर-ए-मक़्सद मिले गर चर्ख़-ए-मीनाई न हो
वो हटे आँख के आगे से तो बस सूरत-ए-अक्स
असरार जहाँ लतीफ़ा-ए-ग़ैबी हैं
दिल आया है क़यामत है मिरा दिल
वो पोशीदा रखते हैं अपना तअ'ल्लुक़
वो दरिया-बार अश्कों की झड़ी है
दिल उचकेगी कि बिखरी है अड़ी है
बदलने रंग सिखलाए जहाँ को
सुब्ह क़यामत आएगी कोई न कह सका कि यूँ
बेदार नहीं कोई जहाँ ख़्वाब में है
ऐ जुनूँ हाथ के चलते ही मचल जाऊँगा