गर्मी इमसाल किस क़यामत की पड़ी
एक एक घड़ी हुई क़यामत की घड़ी
उमडा ये पसीना ये पड़ी धूप कड़ी
बैसाख में लग रही है सावन की झड़ी
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गरमी इमसाल किस क़यामत की पड़ी
चराग़-ए-हुस्न है रौशन किसी का
हाँ जेहल तुम्हीं से रंग लाया फिर क्यूँ
याद में ख़्वाब में तसव्वुर में
कभी हँसाया कभी रुलाया कभी रुलाया कभी हँसाया
जो मकतब-ए-ईजाद में दाख़िल होगा
अदाएँ ता-अबद बिखरी पड़ी हैं
असरार जहाँ लतीफ़ा-ए-ग़ैबी हैं
पीरी की सपेदी है कि मरता हूँ मैं
ख़ूँ बहाने के हैं हज़ार तरीक़
पार दरिया-ए-शहादत से उतर जाते हैं सर
हज़ारों दिल मसल कर पैर से झुँझला के यूँ बोले