नैरंगियाँ फ़लक की जभी हैं कि हों बहम
काली घटा सफ़ेद प्याले शराब-ए-सुर्ख़
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सच है कि जहाँ में सैर क्या क्या देखी
जो मकतब-ए-ईजाद में दाख़िल होगा
दिल उचकेगी कि बिखरी है अड़ी है
वो दरिया-बार अश्कों की झड़ी है
ख़ूँ बहाने के हैं हज़ार तरीक़
पीरी की सपेदी है कि मरता हूँ मैं
याद में ख़्वाब में तसव्वुर में
कब कोई फ़ुज़ूल हाथ मिलता है भला
मिस्ल-ए-हुबाब-ए-बहर न इतना उछल के चल
हज़ारों दिल मसल कर पैर से झुँझला के यूँ बोले
बेदार नहीं कोई जहाँ ख़्वाब में है
आएँगे गर उन्हें ग़ैरत होगी