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यार पहलू में निहाँ था मुझे मा'लूम न था - बयान मेरठी कविता - Darsaal

यार पहलू में निहाँ था मुझे मा'लूम न था

यार पहलू में निहाँ था मुझे मा'लूम न था

तार-ए-गेसू रग-ए-जाँ था मुझे मा'लूम न था

दिल में वो ग़ुंचा वहाँ था मुझे मा'लूम न था

गुल शगूफ़ा में निहाँ था मुझे मा'लूम न था

वो ही नूर-ए-दो-जहाँ था मुझे मा'लूम न था

वही याँ था वही वाँ था मुझे मा'लूम न था

दिल मिरा काबा-ए-जाँ था मुझे मा'लूम न था

नाला गुलबाँग-अज़ाँ था मुझे मा'लूम न था

आँख पर डाल दिया दैर-ओ-हरम का पर्दा

वही दोनों में निहाँ था मुझे मा'लूम न था

सिफ़त-ए-नूर-ए-बसारत वो मिरा पर्दा-नशीं

मेरे पर्दे से अयाँ था मुझे मा'लूम न था

हुस्न-ए-सूरत ने दिया जल्वा-ए-मा'नी का पता

बुत न था संग-ए-निशाँ था मुझे मा'लूम न था

जानिब-ए-काबा-ए-मक़्सूद तन-ए-ज़ार मिरा

रविश-ए-रेग-ए-रवाँ था मुझे मा'लूम न था

बे-ख़बर पढ़ने लगा 'मोमिन'-ओ-'ग़ालिब' का कलाम

कुंज-ए-ख़ल्वत में 'बयाँ' था मुझे मा'लूम न था

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