अर्श तक जाती थी अब लब तक भी आ सकती नहीं
अर्श तक जाती थी अब लब तक भी आ सकती नहीं
रहम आ जाता है क्यूँ अब मुझ को अपनी आह पर
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रहम आ जाता है क्यूँ अब मुझ को अपनी आह पर
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