या रब न हिन्द ही में ये माटी ख़राब हो
या रब न हिन्द ही में ये माटी ख़राब हो
जा कर नजफ़ में ख़ाक-ए-दर-ए-बू-तुराब हो
साया करे वो लुत्फ़ से साया जिसे न था
जिस वक़्त रोज़-ए-हश्र में गर्म आफ़्ताब हो
हासिल हो इस नफ़्स को सिफ़त मुतमइन्ना की
पेश इस से इरजई का उधर से ख़िताब हो
जब चश्म बस्तगी हो मुझे इस जहान में
आँखों के सामने वही आली-जनाब हो
ऐ यार याँ तो मुँह न दिखाया कभू हमें
ऐसा न हो कि वाँ भी 'बयाँ' से हिजाब हो
(695) Peoples Rate This