तेरा सितम जो मुझ से गदा ने सहा सहा
तेरा सितम जो मुझ से गदा ने सहा सहा
तू बादशह है जो मुझे तू ने कहा कहा
दामन तेरे से लग लूँ अगर दे रज़ा मुझे
ये ना-तवाँ ग़ुबार अगर याँ रहा रहा
रख आस्तीं शिताब मिरी चश्म-ए-तर पे जाँ
वर्ना फिरे है सैल में आलम बहा बहा
निकले है लाला ख़ाक के नीचे से सुर्ख़ सुर्ख़
रंगीं हुआ शहीदों के ख़ूँ में नहा नहा
अब जी के डर से उस को 'बयाँ' तू न छोड़ियो
हैं मर्द वे कि बाँह को जिस की गहा गहा
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