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तेरा सितम जो मुझ से गदा ने सहा सहा - बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान कविता - Darsaal

तेरा सितम जो मुझ से गदा ने सहा सहा

तेरा सितम जो मुझ से गदा ने सहा सहा

तू बादशह है जो मुझे तू ने कहा कहा

दामन तेरे से लग लूँ अगर दे रज़ा मुझे

ये ना-तवाँ ग़ुबार अगर याँ रहा रहा

रख आस्तीं शिताब मिरी चश्म-ए-तर पे जाँ

वर्ना फिरे है सैल में आलम बहा बहा

निकले है लाला ख़ाक के नीचे से सुर्ख़ सुर्ख़

रंगीं हुआ शहीदों के ख़ूँ में नहा नहा

अब जी के डर से उस को 'बयाँ' तू न छोड़ियो

हैं मर्द वे कि बाँह को जिस की गहा गहा

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