शिकवा अपने तालेओं की ना-रसाई का करूँ
शिकवा अपने तालेओं की ना-रसाई का करूँ
या गिला ऐ शोख़ तेरी बेवफ़ाई का करूँ
वो कि इक मुद्दत तलक जिस को भला कहता रहा
आह अब किस मुँह से ज़िक्र उस की बुराई का करूँ
आब-ए-ज़मज़म से मैं धो लूँ अपनी पेशानी के तईं
दर पे तब उस के इरादा जब्हा-साई का करूँ
ख़ूब सी तंबीह करना ऐ जुदाई तू मुझे
गर किसी से फिर कभी क़स्द आश्नाई का करूँ
गर मुसख़्ख़र होवे वो ख़ुर्शीद-रू मेरा 'बयाँ'
बादशाही क्या कि मैं दावा ख़ुदाई का करूँ
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